नेताओं के इन ढ़कोसलों और वोट जुगाड़ने के तरीकों से चिढ़ गयी हूं. हाँ जानती हूँ बहुत लोग चिढ़ते हैं, मैं भी उन लाखों में से एक हूँ.

मनोहर कुछ सोलह साल का होगा . वह मुसहर है, मैंने महादालित कहना छोड़ दिया है. नेताओं के इन ढ़कोसलों और वोट जुगाड़ने के तरीकों से चिढ़ गयी हूं. हाँ जानती हूँ बहुत लोग चिढ़ते हैं, मैं भी उन लाखों में से एक हूँ. खैर मनोहर के बारे में आपको बताना चाहती हूँ. तो वोह सोलह साल का होगा, गाँव के एक स्कूल में आठवीं में पड़ता है. उसकी माँ मर गयी है. बाप पंजाब में है, वह घर चलाता है. उसके तीन और भाई बहन हैं सब उस से छोटे हैं. वह उनका पेट पालता है, वह घर चलाता है. वह अब बच्चा नहीं, वह चारों अब बच्चे नहीं, उनके पास बचपन के लिए समय नहीं. मेरी मुलाकत मनोहर के छोटॆ भाई से हुई. जन जागरण शक्ति संगठन की ‘पेंशन और काम मांगो पदयात्रा’ 14 दिसंबर को उस के गाँव से शुरू हुई. जब हम मुसहरी में पहुंचे तो हमने अपने बैनेर कच्ची दीवार में खोस दिए, कुछ पचास बच्चे वहां जमा हो कर बैनर पर लिखे नारे पढ़ने लगे. माणिक अकेला बच्चा था जो कुछ हद तक सही से पढ़ पा रहा था. अक्षर जोड़ जोड़ कर उसने सारे नारे पढ़ डाले. “कमानेवाला खायेगा! लूटनेवाला जाएगा! नया ज़माना आएगा!” “लड़ॆंगे! जीतेंगे!” संगठन के लग-भग 12 साथी इस पदयात्रा में जुड़े हैं. यह पदयात्रा 5 दिन में 8 गाओं टोलों में होती हुई, 18 तारिख को समाप्त होगी. धान का काम छोड़ कर कई साथी इस यात्र में जुड़े हैं, लोगों को मनरेगा के बारे में बताने के लिए, उन्हें काम का आवेदन देने में मदद करने के लिए, पेंशन की पूरी जानकारी देने के लिए, और संगठित होने का आव्हान करने के लिए! ऐसी कई छोटी पदयात्राऐं संगठन अपने इलाके में करता है, नए साथियों को जोड़ने के लिए. रात में यात्री जिस गांव में मीटिंग करते हैं वहीं एक एक घर में खाना खा कर जहाँ व्यवस्था मिलती है सो जाते हैं, सर्दी के सवेरे के घने कुहासे में इन दो दिनों में जब हम अपने बैनर झंडे और बैटरी-माइक से लैस साइकिल से निकले तो शायद 20 मीटर की विजिबिलिटी थी, पर हमारे बुलंद इरादे, हमें आगे जाने के लिए उत्साहित रखते हैं. रात इतनी ठण्ड थी कि शायद  ही कोई साथी ठीक से सोया, पर हमारे ज़यादातर साथी तो रोज़ रात ऐसे ही आधे जगे सोते हैं, क्यूँकि उनके पास न तो सर्दी से बचने के लिए कपड़ा है, न ढंग के घर और न इतनी खर (hay) की वो रात घुरा (आग) के बगल में बिता सकें. बड़ी कंपनी तो हमारे खून से चलती हैं, पर यह लगातार deprivation की ज़िंदगी किस से चलती है? आज बस इतना ही फिर और. ज़िन्दाबाद! कामायनी

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2 Comments

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  1. alok kumar kamti says:

    buland irado ke sath ………………………………………..

  2. mgr kuch log us gusse koa use samaj ko jgane me krte hain or kuch log baithe tmasa dekhte hain.aap aage bdo hum aak=ke sath hain