On his speech

प्रधान मंत्री (पी.एम) महोदय ने बजट सत्र में अपनी बात कुछ इस अंदाज़ में रखी “कभी-कभार यह कहा जाता है कि आप मनरेगा बंद कर देंगे या आपने मनरेगा  बंद कर दिया है….| मेरी राजनीतिक सूझबूझ कहती है कि मनरेगा कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती नहीं कर सकता हूं… मनरेगा आपकी विफलताओं का जीता जागता स्‍मारक है। आजादी के 60साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पडा, यह आपकी विफलताओं का स्‍मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्‍मारक का ढोल पीटता रहूंगा|”

मनरेगा यानि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कानून, मनरेगा यू.पी.ए सरकार का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम जो 2006 से इस देश में लागू है और हर ग्रामीण परिवार को 100 दिन के काम हा हक़ देता है |

पी. एम. की बात में दम है  | आज़ादी के 60 साल बाद  भी क्यों हमारे देश के करोड़ों नागरिक अकुशल मजदूर की श्रेणी में हैं ? पर पंथ प्रधान अपनी बात पर स्वयं गंभीर नहीं हैं | अगर होते तो शायद अपनी बात कुछ इस अंदाज़ में रखते “कभी-कभार यह कहा जाता है कि आप मनरेगा बंद कर देंगे या आपने मनरेगा बंद कर दिया है।… मेरी राजनीतिक सूझबूझ कहती है कि MGNREGA कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती नहीं कर सकता हूं. मैं यह मानता हूँ की यह हमारे देश का दुर्भाग्य है की आजादी के साठ साल भी हमें हमारे मजदूर को गड्ढा खोदने के लिए भेजना पड़ता है इसलिए मैं नरेगा में हर मजदूर को ना सिर्फ 100 दिन के काम की गारंटी दूंगा, इस से आगे बढ़ कर इस काम का नया स्वरूप प्रस्तावित करूंगा यानि अब नरेगा में कुटीर उद्योग होंगे, स्थानीय कॉपरेटिव बनाए जायेंगे, हर नरेगा मजदूर को ‘skilled’ मजदूर यानि कुशल मजदूर के अनुसार वेतन दिया जाएगा | और परेशान न हों, जिन मजदूरों के लिए कुशल मजदूरी का प्रावधान नहीं हो पाया वह पुराने ढर्रे पर गड्ढा खोदेंगे | अन्य कोइ बदलाव नहीं, बस एक बात और- इसके लिए ज़्यादा खर्च होगा इसलिए मैं इस बजट सत्र में 5000 करोड़ अतिरिक्त कोष की घोषणा नरेगा के लिए करता हूँ”.

मैं यह सोच कर खड़ी होती हूँ और तालियों के शोर में चिल्लाती हूँ देखो गांधी स्वच्छता अभियान से बदलाव के लिए मुक्त हो गए हैं, पर यह तो एक स्वप्न हैं.

शायद ही मैं कभी भूलूंगी 2012 में हमारे जिला पदाधिकारी एक नरेगा कार्यस्थल पर आये, वहाँ कई दिनों से  विवाद चलता था | पंचायत कर्मी कहते थे कि काम खोलने पर मजदूर काम पर नहीं आते और हमारे मजदूर संघ के साथी लगातार कहते कि काम खोला नहीं जाता. जिला पदाधिकारी ने खुद जा कर देखने का फैसला किया | वह कार्यस्थल पर सवेरे आठ बजे पहुँच गए | कार्यस्थल पर तब तक 200 मजदूर पहुँच चुके थे | जिला पदाधिकारी वहीं ज़मीन पर हम सब के बीच में बैठ गए | जिला पदाधिकारी ने बगल में मिट्टी काट रहे एक युवा मजदूर की ओर इशारा करते हुए मुझसे पूछा “इस की क्या उम्र होगी?” मैंने अपने अंदाज़ से कहा कुछ 18 साल, उन्होंने कहा “इतनी कम उम्र में यह एक मजदूर की श्रेणी में आ गया है, इसका क्या भविष्य होगा?”

दो बातें स्पष्ट थीं एक मजदूरों को गाँव में काम चाहिए और दूसरी कि हर संवेदनशील इंसान के मन में एक सवाल है कि क्यों कम उम्र में ही देश के आम लोगों को अकुशल मजदूरी में धकेल दिया जा रहा है?

एक असंगठित क्षेत्र के श्रमिक का क्या भविष्य है? न्यूनतम मजदूरी की कोइ गारंटी नहीं, सम्मानजनक जीवन तक की गारंटी नहीं, मजबूरी में पलायन, ठगी का सामना, समाजिक सुरक्षा नहीं, शिक्षा और स्वास्थ्य नहीं, क्यूंकि अब सरकार के पास ऐसी चीज़ों के लिए पैसा नहीं. इन सब के बीच में मनरेगा एक उम्मीद लाया था, किसी ज़मींदार या कर्मचारी के रहमों करम पर नहीं पर हक़ से काम करने की बात हुई | महिला मजदूर जो पलायन कम करती हैं उनके लिए नरेगा ने आर्थिक सशक्तिकरण का नया रास्ता खोला | पर आज हमारे प्रधान मंत्री कहते हैं उन्हें मनरेगा पर विश्वास नहीं |

माननीय पी. एम तो कांग्रेस के विरुद्ध पॉइंट स्कोर कर रहे हैं, उन्हें अकुशल और कुशल मजदूर की सुरक्षा की चिंता नहीं  | वह कहते हैं वह “vindictive” नहीं हैं, पर वह नरेगा पर चर्चा कर बदलाव नहीं करेंगे, वह कांग्रेस की भूल जग जाहिर करने के लिए इस कानून पर टैक्स देने वालों का पैसा बर्बाद करेंगे, अविश्वास और अनिच्छा से इस कानून को चलाएंगे ! पर यह तो “vindictive” ही हुआ, पैसे की बर्बादी भी और शायद दोगलापन भी?

खैर वोट की राजनीति से परे हट कर सोचें … एक ऐसा जिला कलेक्टर जो सवेरे एक गाँव में पहुंचता है, मजदूरों के बीच बैठता है, जो ‘nut-shell’ में जन पक्षी है उस की व्यथा का क्या? असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मजदूरों का क्या? नरेगा रोज़गार गारंटी का पहला कदम था, PM क्या अगला कदम लेने के लिए तैयार हैं? अगर हाँ तो पहले नरेगा पर अपना विशवास जताएं, बजट आवंटन बढ़ाएं और फिर आगे की रणनीति बनाएं.

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