हम कैसा देश बनाना चाहते हैं
और किसके लिए देश बनाना चाहते हैं
नासिरूद्दीन
(बेगुसराय में वामपंथी नेता चंद्रशेखर की जन्मशती समारोह के मौके पर आयोजित विचार विमर्श में प्रस्तुति)
एक
हमें कॉमरेड चंद्रशेखर को देखने का मौका नहीं मिला। हालाँकि हम जब कॉलेज में पहुँचे तो कॉमरेड चंद्रशेखर और उन जैसे लोगों की जिंदगी की कहानियाँ हमारे काम के लिए प्रेरणा बनीं। इसलिए कॉमरेड चंद्रशेखर की जन्मशति पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होकर मैं खुद को सम्मानित महसूस कर रहा हूं। मैं इसलिए भी सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि इस मिट्टी से मेरा खास लगाव है। कन्हैया की ही तरह मेरी भी यहीं की मिट्टी में कहीं नाड़ गड़ी है। होशमंद जिंदगी में शायद दो या तीन बार ही बेगूसराय या बरौनी आने का मौका मिला है लेकिन बरौनी का नाम मेरी जिंदगी के हर दस्तावेज के साथ चस्पा है और ताउम्र रहेगा।
मुझे नहीं मालूम कि आयोजन समिति ने मुझमें ऐसा क्या पाया और मुझे आज के कार्यक्रम में आपके सामने खड़ा कर दिया। मैं कोशिश करूंगा कि अपनी पैदाइशी जमीन पर आप सब बड़े जनों के सामने मेरी जबान और पैर लड़खड़ाएँ नहीं।
दो
आज की बातचीत का विषय है, हम कैसा देश बनाना चाहते हैं। मैं इसमें एक और लाइन जोड़ रहा हूँ, किसके लिए हम कैसा देश बनाना चाहते हैं। मेरी समझ में इसके साथ दो चीजें जुड़ी हैं। एक, यह देश की मौजूदा हालात की बात करता है और दूसरा, भविष्य में हम देश को कैसा देखना चाहते हैं, इसके भी संकेत देता है? यह विषय उतना ही बड़ा है जितनी बड़ी इस मुल्क की चौहद्दी। एक सिरा पकड़ेंगे तो चंद कदम ही चल पाएंगे। मैं भी आपके साथ चंद कदम चलते हुए कुछ संवाद करने की कोशिश करूँगा।
तीन
इस मुल्क में पिछले कुछ दिनों से नारों के जरिए ही संवाद हो रहा है। कुछ नारों के जरिए हमारी भारतीयता, देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति तय की जा रही है। तो कुछ नारे इस मुल्क में कुछ नया गढ़ने की बात कर रहे हैं। नारों के जरिए कैसा देश बनाने की कोशिश हो रही है, यह समझने के लिए मैं आपके साथ कुछ चीजें साझा करूंगा। मैं टुकड़ों-टुकड़ों में कई बात कहने की कोशिश करूँगा। ऐसी उम्मीद है कि बाद में आप सवाल जरूर करेंगे ताकि कुछ बातें अगर साफ न हो पाई हों तो वे साफ हों। वैसे, मेरे पास भी सवाल ही ज्यादा हैं।
चार
वीडियो : पटियाला हॉउस कोर्ट में वकीलों का विरोध
वीडियो : पटियाला हॉउस कोर्ट में कनैह्या को पीटने वाले वकीलों का स्टिंग आपरेशन
वीडियो : भारत माता की जय और बाबा रामदेव का बयान
तो यह थी राष्ट्रभक्ति ! इसलिए आइये बात सबसे पहले राष्ट्रवाद के ताजा उभार से करते हैं। ‘भारत माता की जय’ की ये गूंज आपने सुनी है? देशभक्ति का अब यही पैमाना है। है न? कहा जा रहा है जिसने भारत माता की जय नहीं कहा, वे राष्ट्रद्रोही हैं। इससे पहले एक और नारे के बारे में भी यही कहा जाता था। भारत में रहना है तो …. कहना पड़ेगा। कुछ लोगों को राष्ट्रभक्ति दिखाने के लिए यह जबरदस्ती क्यों करनी पड़ती है? क्यों समय-समय पर वे इन्हें उठाते रहते हैं? क्या यह जबरदस्ती सभी समुदायों और जातियों के साथ है? या कुछ लोगों के साथ ही है? तो क्या कुछ लोग हैं जो इनके राष्ट्र की राह में रोड़े में हैं। ये रोड़ा डालने वाले लोग कौन हैं? क्या यहां बैठे लोग इसमें शामिल हैं?
वैसे, ये किस ‘भारत माता की जय’ की बात कर रहे हैं?
पाँच
आजादी के संघर्ष के दौरान गुलामी के खिलाफ प्रतीकों, चिन्हों, नारों के जरिए लोगों को गोलबंद करने के अनेक तरीके अपनाए गए। लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ जागरूक करने के लिए कहीं नारे बने तो कहीं किसी त्योहार का इस्तेमाल किया गया। आज जिस रूप में भारत माता का इस्तेमाल हो रहा है, उसका विचार डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराना नहीं है।[1] मशहूर इतिहासकार डीएन झा के मुताबिक, 1866 में उनाबिम्सा पुराण’ (‘Unabimsa Purana’) या ‘उन्नीसवें पुराण’, 1873 में केसी बंदयोपाध्याय के नाटक ‘भारत माता’ और 1880 में ‘आनंदमठ’ जैसी रचनाओं में पहली बार ‘भारत माता’ का जिक्र प्रमुखता से आता है।
अबनीन्द्रनाथ टैगोर की बंगमाता/भारतमाता (1905)
अभी तक भारत माता की कोई ठोस सूरत नहीं थी। ऐसा पता चलता है कि 1905 में पहली बार अबीन्द्रनाथ टैगोर एक तस्वीर बनाते हैं। पहले इसका नाम वे ‘बंगमाता’ रखते हैं। फिर वे इसे भारत माता का नाम देते हैं। इन्हीं के मार्फत भारत माता की छवि और विचार लोकप्रिय बनाने की कोशिश होती है। चूंकि बंगाल में दुर्गा लोकप्रिय देवी हैं। इसलिए दुर्गा के रूप में भारत माता गढ़ी गईं। लेकिन इस प्रतीक के इर्द-गिर्द जो चीजें गढ़ने की कोशिश हुई, वह एक खास तरह की संस्कृति और विचार से लबरेज है। आप कहीं भी भारत माता की तस्वीर देखें, इन तसवीरों में जो भारत के रूप में देवी हैं, वे वस्तुत: दुर्गा के ही रूप हैं। इस छवि में खास धार्मिक छवि मिली हुई है, इसीलिए इस छवि से उलट भी कई लोगों ने भारत माता को देखने की कोशिश की।
छह
बनारस का भारत माता मंदिर
1936 में बनारस में शिवप्रसाद गुप्त ने भारत माता का एक मंदिर बनवाया। इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। बल्कि संगमरमर का बना भारत का बड़ा सा नक्शा है। इस नक्शे का उद्घाटन करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था, ‘इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। यहां संगमरमर पर उभारा हुआ भारत का एक मानचित्र भर है। मुझे आशा है कि यह मंदिर सभी धर्मों, हरिजनों समेत, सभी जातियों और विश्वासों के लोगों के लिए एक सार्वदेशिक मंच का रूप ग्रहण कर लेगा और इस देश में पारस्परिक धार्मिक एकता, शांति तथा प्रेम की भावनाओं को बढ़ाने में योग देगा।’
गांधी जी के लम्बे भाषण में दो चीज का जिक्र है- एक, यह मंदिर है लेकिन इसमें कोई देवी-देवता नहीं है। दो, यहाँ सभी आएँ। यानी एक ऐसा भारत जिसमें बिना किसी भेदभाव के सब शामिल हैं। इस सभा में सभी धर्म के लोग गांधी जी को सुनने मंदिर पहुँचे थे। यहाँ फिर सवाल है कि इस मंदिर में भारत माता की मूर्ति क्यों नहीं बनाई गई?
सात
वैसे भारत माता कौन हैं? एक पल को आप रुकें और सोचें कि आपके सामने यह सवाल है और हर किसी को इसका जवाब देना है। आपका जवाब क्या होगा? क्या यहाँ बैठे हर साथी का जवाब एक सा होगा?
जवाहरलाल नेहरू की एक मशहूर रचना है, भारत की खोज। सन 1940 के दौरान लिखी गई है। यानी तब तक आजादी की लड़ाई उरुज पर थी। फिजाओं में यह नारा भी था। देखिए इस नारे पर जवाहरलाल नेहरू क्या कहते हैं-
वीडियो : भारत माता और जवाहर लाल नेहरू
‘…कभी-कभी जैसे ही मैं किसी सभा में पहुँचता था, मेरे स्वागत में अनेक कंठों का स्वर गूँज उठता था- ‘भारत माता की जय’। मैं उनसे अचानक प्रश्न कर देता कि इस पुकार से उनका क्या आश्य है? यह भारत माता कौन हैं, जिसकी वे जय चाहते हैं। मेरा प्रश्न उन्हें मनोरंजक लगता और चकित करता। उनकी ठीक-ठीक समझ में नहीं आता कि वे मुझे क्या जवाब दें और तब तक वे एक दूसरे की और और फिर मेरी ओर ताकने लगते। मैं बार-बार सवाल करता जाता। आख्रिर एक हट्टा-कट्टा जाट, जिसका न जाने कितनी पीढि़यों से मिट्टी से अटूट नाता है, जवाब में कहता कि यह भारत माता हमारी धरती है, भारत की प्यारी मिट्टी। मैं फिर सवाल करता- ‘कौन सी मिट्टी?- उनके गाँव के टुकड़े की या जिले और राज्य के तमाम टुकड़ों की, या फिर पूरे भारत की मिट्टी?’ प्रश्नोत्तर का यह सिलसिला तब तक चलता रहता जब तक वे प्रयत्न करते रहते और आखिर कहते कि भारत वह सब कुछ तो है ही जो उन्होंने सोच रखा है, उसके अलावा भी बहुत कुछ है। भारत के पहाड़ और नदियाँ, जंगल और फैले हुए खेत जो हमारे लिए खाना मुहैय्या करते हैं, सब हमें प्रिय हैं। लेकिन जिस चीज का सबसे अधिक महत्व है वह है भारत की जनता, उनके और मेरे जैसे तमाम लोग, वे सब लोग जो इस विशाल धरती पर चारों और फैले हुए हैं।
भारता माता मूल रूप से यही लाखों लोग हैं और उसकी जय का अर्थ है, इसी जनता जर्नादन की जय। मैंने उनसे कहा कि तुम भारत माता के हिस्से हो, एक तरह से तुम खुद ही भारत माता हो। जैसे-जैसे यह विचार धीरे-धीरे उनके दिमाग में बैठता जाता है, उनकी आँखें चमकने लगतीं मानों उन्होंने कोई महान खोज कर ली हो’। … मेरे ख्याल से हम सब के मन में अपनी मातृभूमि की अलग-अलग तस्वीरें हैं और कोई दो आदमी बिल्कुल एक जैसा नहीं सोच सकते।[2]
आठ
मशहूर कवि सुमित्रानंदन पंत की एक कविता है ‘भारत माता’। देखिए, उनकी ‘भारत माता’ कैसी हैं?
भारत माता
ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला सा आँचल
गंगा यमुना में आँसू जल,
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी
भारत माता
ग्राम वासिनी
और
धरती का आँगन इठलाता
शस्य श्यामला भू का यौवन
अंतरिक्ष का हृदय लुभाता
जौ गेहूँ की स्वर्णिम बाली
भू का अंचल वैभवशाली
इस अंचल से चिर अनादि से
अंतरंग मानव का नाता…
उर्दू के मशहूर शायर और बिहार से ताल्लुक रखने वाले जमील मजहरी की एक नज्म है, भारत माता। वे लिखते हैं,
माता-माता प्यारी माता! …
बच्चे तुझ पर वारी माता!
ओ माता! ओ भारत माता! !
तुझ पे खुदा की रहमत माता!
सुंदरी तू, हरियाली तू है
धानी आंचलवाली तू है
फूल खिलाएं तेरी हवाएं
…
अन देती है, जल देती है
चांदनी रातों के जलवे में
बिंदराबन के सन्नाटे में
जब तारों की सभा सजती है
हिरदे की बंसी बजती है…
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
तेरी गोद में भाई- भाई
छीटों में तेरे बादल के
साये में तेरे आंचल के
गंगा और जमुना की रवानी
कहती है माता तेरी कहानी
- अमृता शेरगिल 2. फिल्मकार महबूब 3. रघु राय (छायाकार ) 4. एस.पॉल (छायाकार) की नजरों में भारत माता
आइए कुछ और पीछे लौटते हैं।
हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा,
पाक वतन है कौम का जन्नत से भी न्यारा।
ये है हमारी मिल्कियत, हिन्दुस्तान हमारा
इनकी रूहानियत से रोशन है जग सारा।
कितना कदीम कितना नईम, सब दुनिया से प्यारा,
करती है जरखेज जिसे गंगो-जमुन की धारा।
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा।
इसकी खानें उगल रही हैं, सोना, हीरा, पारा,
इसकी शान-शौकत का दुनिया में जयकारा।
….
हिन्दू-मुसलमां, सिख हमारा भाई-भाई प्यारा
कामरेड पीसी जोशी के मुताबिक, यह आजादी की पहली लड़ाई का तराना और झंडा गीत था। इसे अजीमुल्ला खां ने लिखा था।
इसके साथ ही कई और नारे होंगे लेकिन आजादी की पहली लड़ाई का मुख्य स्वर यही था। यानी यह मुल्क यानी सभी मजहब मानने वाले लोगों का मुल्क।
शायद इसीलिए सबको साथ लेकर चलने में यकीन रखने वाली आजादी की सबसे मजबूत धारा को कुछ नारों की सीमा का अंदाजा कुछ समय बाद ही लग गया था। वे अंग्रेजी शासन के खिलाफ सतरंगी मुहिम खड़ा करने के लिए ‘भारत माता की जय’, ‘जय भवानी’, ‘हर हर महादेव’, ‘नारे तकबीर’ जैसे नारों से गुरेज करने लगे थे।
आजादी के दौर के कुछ और नारों पर ग़ौर करें तो जिन पहचानों को आज बार-बार कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है, शायद उनके बारे में थोड़ा और सच पता चले. ‘हमारा नारा, मुकम्मल आजादी’ यानी पूर्ण स्वराज का नारा सबसे पहले मौलाना हसरत मोहानी ने दिया था. इन्हीं मौलाना हसरत मोहानी ने ‘नारे तकबीर, अल्लाह हो अकबर’ या ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ की जगह, ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा भी दिया. यह नारा हमारी आजादी के क्रांतिकारी आंदोलन का सबसे दिलकश नारा साबित हुआ.
भगत सिंह और उनके दोस्तों को देखें और उनके नारों पर ग़ौर करें. इन्होंने जो कुछ नारे सबसे जोरदार तरीके से उठाए इनमें थे… ‘इंकलाब जिंदाबाद!’ ‘हिन्दुस्तान जिंदाबाद!’
इक़बाल के तराना ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा…’ से हम सब वाकिफ हैं. इसे गाने से किसी को एतराज हुआ हो, अभी तक सुना नहीं है. पर इस वक्त दकन यानी तेलंगाना की आजादी के सिपाही मख्दूम मोहिउद्दीन को याद करना जरूरी है. उन्होंने नारा दिया, ‘कहो, हिन्दोस्तां की जय, कहो, हिन्दोस्तां की जय’. वे हिन्दोस्तां की जय करते हैं और किसानों, मजदूरों, नौजवानों, शहीदों, जिंदगियों की जय की बात करते हैं.
सुभाषचंद्र बोस को गरम दलीय नेता माना जाता है. क्या हमने कभी गौर किया कि उनका नारा ‘जय हिन्द’ क्यों था? उनके देशप्रेम को उसी स्केल पर क्यों न नापा जाए, जिस स्केल पर आज बहुतों को नापा जा रहा है. क्या हम यह आज तय करेंगे- आजाद हिन्द फौज ने फलां नारा नहीं लगाया था, इसलिए वे, वे नहीं हैं. लाल किले से हमारे प्रधानमंत्रियों ने सबसे ज्यादा ‘जय हिन्द’ के ही नारे लगाए हैं. क्या ये लोग कम देशभक्त थे?
नारे तो ढेर सारे होंगे और थे लेकिन ऐसा क्यों हुआ कि आजादी की लड़ाई की सबसे मजबूत धारा ऐसे नारों पर अपनी जान लगा रही थी, जिनमें किसी मजहबी पहचान की झलक नहीं थी. उसके संकेत भी नहीं थे. वे किसी ऐसे नारे से अपने को जोड़ने को तैयार नहीं थे, जिससे हिन्द का रहने वाला छोटे से छोटा तबके के जुड़ने से बचने का डर हो. नारे उनके लिए हिन्द के वासियों को जोड़ने का जरिया थे.
नौ
सूखा पड़ा है। किसान मर रहे हैं। गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं। और पूरे देश को एक नारे में उलझा दिया गया। क्या आपने सोचा मार्च-अप्रैल के महीने में जब हमें बजट पर बहस करना चाहिए था, हम किन चीजों पर बहस कर रहे हैं। ये उस भारत या भारत माता की बात तो नहीं ही हो रही, जिसकी बात महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, पंत, मजहरी करते दिखते हैं। इनकी भारत माता तो जीती जागती हमारे आपके पास पड़ोस घर में रहने वाली हैं। अगर उनकी तरह बात होती तो उस भारत माता का कलेजा आज सूखा से फट रहा है।
दस
ये भारत माता की जय लगाने वाले असल में जो भारत बनाना चाहते हैं, वह एकरंगा और नफरत से भरा है। इसमें कुछ लोगों का प्रवेश वर्जित है। कुछ लोग अनचाहे हैं। कुछ लोगों की हैसियत दोयम दर्जे की है। ये मुल्क को बाँटने के लिए हो रहा है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भारत माता
अब हम फिर एक सवाल खुद से करें- हम किसकी जय बोलना चाहते हैं? हमारे लिए राष्ट्र का मतलब क्या है? हम किसी राष्ट्रवाद के पैरोकार हैं? क्या सभी लोगों का जवाब एक जैसा है? क्या आप सबका जवाब उनसे मेल खा रहा है, जो लोग आज जबरन भारत माता की जय बोलने के फतवे दे रहे हैं?
भारत माता की जय के नारे के जरिए एक साथ कई निशाना साधा जा रहा है। असलीयत में गो हत्या, घर वापसी, लव जिहाद, आरक्षण के बाद भारत माता का मुद़दा छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर एक नया उन्माद खड़ा करने की कोशिश है। यह नारा इसलिए भी चुना गया क्योंकि कुछ समूह इस छद्म राष्ट्रवाद को चुनौती दे रहे हैं। इस चुनौती में सबसे आगे लड़कियां और दलित हैं।
अब इस भारत माता में माता कैसी हैं? वह शेर पर सवार है। संहारक हैं। हिंसक मर्दानगी से भरपूर हैं। सवाल है इस भारत में स्त्री का क्या यही रूप है। अभी कुछ दिनों पहले चैत्र नवरात्र गुजरा है। सप्तमी/अष्टमी को एक दिन कन्या जिमाई जाती है। इस भारत माता की जय में कन्या कहां है। क्न्या या स्त्री सिर्फ माता नहीं होती। बेटी, बहन, बहू, भाभी, पत्नी, दोस्त, साथी, पड़ोसी, कामरेड, लीडर… ये सभी रूप भी तो हैं। और सिर्फ अपने ही धर्म या जाति की नहीं बल्कि सभी धर्म और जाति में ये रूप होते हैं।
डिजाइनर शेरना दस्तूर का सवाल
बिहार | बेगूसराय | ||
आबादी | 104,099,452 | 2,970,541 | |
ग्रामीण आबादी | 92,341,436 | 2,400,718 (80 फीसदी) | |
लिंग अनुपात | 918 | 895 | |
शिशु लिंग अनुपात | 935 (942-1991) | 919 | 946 (1991)/ 27प्वाइंट |
साक्षरता दर | 61.8 | 63.87 | |
पुरुष साक्षरता दर (7+) | 71.2 | 71.58 | |
महिला साक्षरता दर (7+) | 51.5 | 55.21 | 16.37 |
कुछ आंकड़े देखें. ये आंकड़े बता रहे हैं की बिहार और बेगूसराय में बेटी का क्या हाल है. पैदा होने से शुरू करें और परवरिश तक पहुंचे तो पता चलता है कि भारत माता पर भले ही जान न्योछावर करने की बात की जा रही हो, पर बेटियां तो अनचाही ही हैं. तो हम कौन सी भारत माता की जय करना चाहते हैं?
वीडियो : मुज़फ्फरनगर में भारत माता की जय
वीडियो : मुजफ्फरनगर दंगों में यौन हिंसा
रोजमर्रा की जिंदगी में भले ही हम महिलाओं को कोई सम्मान न दें लेकिन जैसे ही राज्य, राष्ट्र, समुदाय, जाति का सवाल आता है, स्त्रियाँ सम्मानित/ इज्जतदार हो जाती हैं. इसीलिए अक्सर छद्म राष्ट्रीयता वाले, जिन्हें वे अपने समुदाय या जाति का विरोधी मानते हैं, वे उन्हें राष्ट्रविरोधी करार देते हैं। फिर दूसरे समुदाय या जाति की स्त्रियों के शरीर पर भारत माता की जय होता है. ठीक उसी तरह से जैसा मुजफ्फरनगर में हुआ।
तो क्या छद्म राष्ट्रवादियों की कोशिश हमें ऐसा ही हिंसक बनाने की है? अब हमें तय करना है कि हम ऐसा बनना चाहते हैं या नहीं.
प्रीती गुलाटी की भारत माता
ग्यारह
कम्युनिस्ट घोषणापत्र में एक लाइन है। वह लाइन कहती है कि इस वक्त यूरोप को एक प्रेत डरा रहा है- यह प्रेत साम्यवाद का है। भारत में इस वक्त एक भूत हिन्दुत्ववादियों को सता रहा है। जी, वह भूत इस्लाम का नहीं है। वह भूत या काली छाया दलित चेतना की है. इस चेतना में अम्बेडकर के साथ वाम विचार भी हैं. आईआईटी मद्रास, हैदाराबाद विश्वविद्यालय, एफटीआईआई और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की घटनाएं इसी बात का तस्दीक कर रही हैं।
यहाँ से लगभग 200 किलोमीटर दूर एक इलाका है. वहां कुछ होनहार बच्चे-बच्चियाँ हैं. जब वे स्कूल गएँ तो उन्हें बैठने को बेंच नहीं मिली. उन्हें ज़मीन पर बैठाया गया. उन्हें दुत्कारा गया. उन्हें कहा गया कि उनके पास दिमाग नहीं है. वे बुद्धू हैं. वे पढ़ नहीं सकते. छह सात साल के बच्चे को पता है कि वह इनसे ऊँची जाति का है. यहाँ से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर एक और इलाका है. वहां एक मास्टर साहेब हैं. पिछली सरकार में बच्चों को स्कूल तक लाने की जिम्मेदारी टीचर पर दाल दी गई. इन मास्टर साहेब कि क्या राय थी- कुछ भी कर लीजिए, ये पढ़ नहीं सकते. अक्कल थोड़े ही दे सकते हैं.
ऐसे ही माहौल में पढ़े ये ‘बुद्धू’ लड़के लड़कियाँ बड़ी तादाद में अब देश के बड़े नामी कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में पहुंच गए हैं. अब तक जो उन्हें बताया गया, वे अब आसानी से मानने को राज़ी नहीं हैं. वे ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना पर आधारित’ आंबेडकर का ‘आदर्श समाज’ बनाने का ख्वाब देखते है. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट रोहित वेमुला और उसके साथी ऐसा ही समाज बनाने का ख्वाब देखते थे. एक मामूली सी घटना के बाद ए बीवीपी और बीजेपी के मंत्री की शिकायत के बाद उन्हें विश्विद्यालय से निकाल दिया गया. उनके वजीफे बन्द कर दिए गए. और एक दिन रोहित ने जान दे दी. रोहित और उसके साथी भी भारत माता की जय का नारा नहीं लगाते थे. उन्हें भी राष्ट्रद्रोही कहा गया. ये हम कैसा देश बना रहे हैं?
लेकिन रोहित की मौत ने पूरे देश में एक सरगर्मी पैदा कर दी है.
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जेएनयू में जो हुआ, वह रोहित की इसी छाया के आतंक का नतीजा है. इससे आवाज़ दबी नहीं. भगत सिंह के शब्दों में ‘विचार की सान तेज़’ हो रही है. ये हर उस चीज़ को चुनौती दे रहे, जिसे वे अपनी आजादी की राह में रोड़ा समझते हैं. वे संविधान के जरिए हर नागरिक को हासिल बराबरी और इंसाफ के हक की बात कर रहे हैं। वे अपने भगवान तय कर रहे हैं. वे राष्ट्रविरोधी होने का खतरा उठा रहे हैं और देवी-देवताओं की प्रचलित कथाओं को चुनौती दे रहे हैं।
आपके यहाँ से 300 किलोमीटर की दूरी पर एक महिला रहती हैं सुमन सौरभ. जब आप हम विजयादशमी, दुर्गापूजा, दशहरा मनाते हैं, सुमन इसी मौके पर पिछले कुछ सालों से महिषासुर शहादत दिवस मना रही हैं. उनका मानना है, महिषासुर उनके पूर्वज थे. ध्यान रहे, भारत माता की जबरन जय बुलवाने वालों की मूर्तियों और दुर्गा में अंतर नहीं है.
इसी लिए मायावती भी कहती है, हम भारत माता की जय नहीं कहेंगे.
बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर कहते हैं, “मुझे अक्सर गलत समझा गया है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि मैं अपने देश को प्यार करता हूँ। लेकिन मैं इस देश के लोगों को यह भी साफ़ साफ़ बता देना चाहता हूँ कि मेरी एक और निष्ठा भी है जिस के लिए मैं प्रतिबद्ध हूँ।… यह निष्ठा है अस्पृश्य समुदाय के प्रति जिसमे मैंने जन्म लिया है। … और मैं इस सदन में पूरे जोर के साथ कहना चाहता हूँ कि जब कभी देश के हित और अस्पृश्यों के हित के बीच टकराव होगा तो मैं अस्पृश्यों के हित को तरजीह दूंगा। अगर कोई आततायी बहुमत देश के नाम पर बोलता है तो मैं उसका समर्थन नहीं करूँगा। मैं किसी पार्टी का समर्थन सिर्फ इसी लिए नहीं करूँगा कि वह पार्टी देश के नाम पर बोल रही है। जो यहाँ हैं और जो यहाँ नहीं हैं, सब मेरी भूमिका को समझ लें। मेरे अपने हित और देश के हित के साथ टकराव होगा तो मैं देश के हित को तरजीह दूंगा, लेकिन अगर देश के हित और दलित वर्गों के हित के साथ टकराव होगा तो मैं दलितों के हित को तरजीह दूंगा।”
तो क्या भारत माता की जय न बोलने वाली मायावती और अम्बेडकर को राष्ट्रद्रोही कहेंगे। कहना भी चाहेंगे तो नहीं कह पाएँगे। अम्बेडकर के ख्यालों और दलित चेतना का जैसा उभार देखने को मिल रहा है, वह अपनी अलग ही जबान, नारे और मुहावरे गढ़ रहा है। इनका राष्ट्रवाद, देशभक्ति एकदम नया और ताजा हवा के झोंके की तरह है।
बारह
आपने जय भीम का ये नारा सुना है… सुनिए उस भारत के नारे को जिसे अब तक हाशिए पर रखा गया है.
वीडियो : संभा जी भगत की आवाज़ में जय भीम
यह नए नारे नए नायकों की बात कर रहे हैं। संविधान की बात कर रहे हैं। इनका राष्ट्रवाद, वही नहीं है जो पटियाला हाउस या मुजफ्फरनगर में नारा लगाने वालों का है।
अचानक पिछले दो दशकों में यह नारा और मशहूर हुआ है, ‘जय भीम’. इस नारे को लगाने वाले को क्या कहा जाएगा? जो ये नारा लगा रहे हैं, वे इन दो शब्दों से अपनी नई पहचान गढ़ रहे हैं. नए विचार को अपना रहे हैं. उनके इस नारे में बहुजन के हिन्दोस्तां की जय है.
नारों का विचार से ताल्लुक है. नारों का मौजूदा हालत के साथ-साथ भविष्य से भी ताल्लुक है. इसलिए भारत की जय कैसे होगी, यह हिन्द के किसान, मजदूर, नौजवान, दलित, आदिवासी, स्त्रियां तय करेंगी. इनकी जय सतरंगी होगी तो जाहिर है, इनके भारत की जय के नारे भी सतरंगे होंगे. वैसे, ये भी तो कह सकते हैं, जिसने हमारा फलां नारा नहीं लगाया … वे राष्ट्रद्रोही हैं। हम ध्यान रखें, इनके पास नारों की लम्बी लिस्ट है. वे सब नारों में भारत के लोगों की ही जय की बात करते हैं.
तेरह
करीब दो दशक से एक गीत जगह-जगह सभाओं और जुलूसों में सुना जा रहा है. यह गीत इप्टा के गायकों के जरिए लोकप्रिय हुआ। इस गीत के लिखे रूप के बारे में पता नहीं. अलग-अलग समूह अलग-अलग तरीके से गाते हैं. महिलाएं अपने हिसाब से तो दलित अपने हिसाब से. जैसे- हिंसा मुक्त माहौल की मांग करने वाली लड़कियां गाती हैं- आजादी ही आजादी, हमें चाहिए हिंसा से आजादी… हमें चाहिए डर से आजादी… बहना मांगे, जीने की आजादी… हमें चाहिए बराबरी का हक… हम लेकर रहेंगे बराबरी का हक. भेदभाव की हिंसा के शिकार दलित गाते हैं– हमें चाहिए जातिवाद से आजादी… हमें चाहिए छुआछूत से आजादी. हमें चाहिए साम्प्रदायिकता/ दंगाइयों से आजादी… हमें चाहिए मनुवाद से आजादी… शराब के खिलाफ आंदोलन करने वाली महिलाओं का झुंड गाता है … मेरी बहना मांगें शराब से आजादी , मेरी सहेली मांगे सट्टा बाजारी से आजादी. दो जून रोटी के लिए जद्दोजेहद करने वाले गाते हैं … हमें चाहिए भूख से आजादी… हमें चाहिए रोजगार की आजादी… आजादी ही आजादी.
उर्दू के मशहूर शायर और प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े अली सरदार जाफरी आजादी के बाद लिखते हैं।
कौन आजाद हुआ
किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी
मेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी का
मादरे-हिन्द के चेहरे पे उदासी वही।
कौन आजाद हुआ…
शायर अदम गोंडवी कहते हैं,
‘सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैं
दिल पर रखकर हाथ कहिए देश क्या आजाद है’ .
इतनी आजादी! अब सवाल है कि कान में एक साथ पड़तीं ‘आजादियों’ की गूंज, किन्हें नागवार गुजर रही है।
लेकिन हम तो ऐसी ही आजादियों का देश बनाना चाहते हैं।
वीडियो : कनैह्या की आजादी
साथियों मुझे चंद मिनट और दीजिए…
मेरे जहन में कई सवाल हैं। उनमें से चंद यहां आपके बीच साझा कर रहा हूँ। मेरी समझ में इसके जवाब में छिपा है, हम कैसा देश बनाना चाहते हैं।
- क्या जो ‘भारत माता की जय’ या ‘वंदे मातरम’ बोलेगा सिर्फ वही देशभक्त है?
- क्या जो लोग हिन्दोस्तां की जय, हिन्दोस्तां जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद, जय हिन्द, जय भीम का नारा लगाएंगे वे भी देशभक्त हैं?
- क्या हम मानते हैं कि जो सरकार पर सवाल उठा रहे या उससे असहमत हैं, वे राष्ट्रद्रोही हैं?
- क्या हम चाहते हैं कि संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’ ‘बराबरी’ और ‘समाजवाद’ जैसे शब्द हटा देने चाहिए?
- क्या हम अपने मजहब/धर्म/जाति को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं? क्या हम अपने घर/समाज में अंतरधार्मिक-अंतरजातीय शादियों का विरोध करते हैं?
- क्या मुसलमानों का सरकार ज्यादा ख्याल रखती है? क्या इस्लाम आतंक सिखाता है? क्या मुसलमान पर भरोसा नहीं करना चाहिए?
- क्या हम मानते हैं कि बेटा-बेटी एक समान हैं? क्या हम खानदान में कम से कम एक बेटे के लिए लालायित रहते हैं?
- क्या जिन लोगों ने अफजल गुरु, याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ आवाज उठाई, वे देशद्रोही हैं?
- क्या हमारी और हमारे परिवार की किसी दलित या दलित परिवार से दोस्ती है? क्या हमारा परिवार दलित दोस्त के घर आता-जाता और खाता-पीता है?
- क्या हम मानते हैं कि इस मुल्क में सदियों से आबादी के बड़े हिस्से को जाति के नाम पर दबा कर रखा गया है? क्या हम मानते हैं कि इसलिए सामाजिक इंसाफ और बराबरी के लिए आरक्षण जरूरी है?
- अगर हमारे पास किराए के लिए कमरा है तो क्या हम किसी मुसलमान, दलित या अकेली लड़की को किराए पर दे देंगे?
- क्या हम मानते हैं कि दलितों के पास हमारे जैसा ही दिमाग है? वे, सब कुछ कर सकते हैं, जो गैर दलित करते हैं?
- क्या बेगूसराय के गांवों, मोहल्लों, स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों में गरीबों, दलितों, महिलाओं, लड़कियों के साथ भेदभाव खत्म हो गया है?
- क्या हम मानते हैं कि हर तरह की गैरबराबरी खत्म होनी चाहिए?
- क्या हमें यकीन है कि इससे बेहतर दुनिया, इसी लोक में मुमकिन है?
हालांकि इनमें से कुछ भी सवाल का जवाब अगर ‘नहीं’ है या हम सवालों से सहमत नहीं हैं तो… तो रोहित वेमूला, कन्हैया, उमर जेएनयू के जरिए उठती बहस के बारे में हमें जरूर सोचना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि अगर हम किसी दलित या पसमांदा या आर्थिक रूप से गरीब या मुसलमान घर में पैदा होते तब किस-किस पड़ाव पर और कहां-कहां हमारे साथ क्या-क्या होता?
इस मुल्क में एक संविधान है। इसी संविधान के मुताबिक देश को चलना है। संविधान में देश है- हम भारत के लोग। संविधान देश से इसी तरह मुखातिब है। हम भारत के लोग, कोई जड़ चीज नहीं है और न ही इसकी काया एकरंगी है। यह जिंदगी से भरपूर है। बहुरंगी है। संविधान भारत के लोगों के लिए इंसाफ, बराबरी, आजादी और बंधुत्व की गारंटी करता है और ऐसा ही मुल्क बनाने का ख्वाब देखता है। वह धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य का वादा करता है।
क्या हम ऐसे मुल्क की गारंटी भारत के लोगों के लिए कर रहे हैं।
अगर हमें इससे बेहतर बिहट, बेगूसराय, बिहार या देश बनाना है तो सबको साथ आना होगा। सिर्फ खांटी कार्डधारक वामपंथी नहीं, सिर्फ सवर्ण नहीं, सिर्फ हिन्दू नहीं, सिर्फ मर्द नहीं…
ये आसान जंग नहीं है। यह जंग विचारों की सान पर तेज होगी। विचार का दायरा जितना बड़ा होगा, गोलबंदी उतनी ही बड़ी होगी।
ये वक्त छोटे-छोटे मतभेदों में उलझे रहने का नहीं है।
यही कॉमरेड चंद्रशेखर के मूल्य थे। यही उनकी विरासत है। सवाल है हम इस विरासत को आगे बढ़ाने को तैयार है या नहीं।
शुक्रिया।
[1] http://scroll.in/article/805990/far-from-being-eternal-bharat-mata-is-only-a-little-more-than-100-years-old
[2] भारत की खोज (संक्षिप्त संस्करण), जवाहरलाल नेहरू, अनुवाद- निर्मला जैन, एनसीईआरटी, 1996 पेज- 14-15, 18
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