नजीर बना बिहार केंद्र भी पहल करे

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कामायनी स्वामी और आशीष रंजन

यह लेख ३ जुलाई, २०१६ को राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप) में प्रकाशित हुआ |

ग्रामीण बिहार में अफसर को हुजूर कहकर संबोधित करना आम बात है | एक साधारण ग्रामीण मजदूर अपनी चप्पल उतारकर अभी भी जिला पदाधिकारी के कमरे में जाता है | सरकार को हम “माई बाप” मानते हैं | यह अंग्रेजों की गुलामी की विरासत है | इस “माई-बाप” वाली सरकार को हमारी सरकार में कैसे बदला  जाए एक गंभीर और चुनौतीपूर्ण विषय है  | सूचना का अधिकार आन्दोलन और उसके नतीजतन २००५ में बना सूचना का अधिकार कानून ने इस दिशा में कई दरवाजे खोले | पहली बार एक आम नागरिक  के पास ऐसा औजार आया जिससे वह “फाइलों” में दबी रहस्यों को साफ़ तौर पर जान सकें और सरकार से पूछताछ कर सके | अफसरशाही, भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता से आहत सरकारें भी थीं और इसलिए उन्हें भी यह कानून काम का लगा | हालांकि वह आशंकित भी थे | कैसे सरकारी सेवा बिना दफ्तर के चक्कर लगाए और बिना घूस दिए लोगों लोगों को मिले एक अहम् चिंता का विषय और एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा बना |  इस माहौल में बिहार सरकार ने एक कदम आगे रखते हुए अगस्त २०११ में बिहार लोक सेवायों का अधिकार अधिनियम, 2011 (RTPS) पारित किया |

RTPS

इस कानून के तहत लोगों को समय सीमा के भीतर सरकारी सेवा पाने का अधिकार दिया गया  | सेवा पाने के लिए प्रखंड  स्थित RTPS काउंटर पर समुचित दस्तावेज के साथ आवेदन जमा करना होता है जिसकी रसीद मिलती है | समय सीमा के भीतर काम नहीं होने पर आवेदक ३० दिनों के भीतर अपीलीय प्राधिकार के पास अपील कर सकता/सकती है | अगर प्रथम अपील से संतुष्ट नहीं तो आवेदक ६० दिनों के अन्दर दूसरी अपील में जा सकता है | अपीलीय प्राधिकारों को वित्तीय दंड और विभागीय कारवाई करने की अनुशंसा करने की शक्ति प्रदान की गयी | कानून में 250 रु प्रति दिन के हिसाब से अधिकतम 5000 रु तक के दंड का प्रावधान है | द्वितीय अपील प्राधिकारी को अपीलीय प्राधिकारी को भी दण्डित करने की शक्ति दी गयी जो सूचना का अधिकार कानून से आगे का कदम है | लेकिन इस कानून में कई कमियाँ भी हैं | कोई स्वतंत्र अपीलीय प्राधिकार नहीं रखा गया | उसी विभाग के अधिकारी को अपीलीय प्राधिकार और द्वितीय अपीलीय प्राधिकार बनाने से अपील की व्यवस्था बेहद कमजोर कर दी गयी | इसके अतिरिक्त RTPS सभी सेवाओं पर लागू नहीं किया गया बल्कि जाति, आवासीय, आय प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस और परिवहन विभाग से सम्बंधित कई काम, और सामाजिक सुरक्षा पेंशन, दाखिल खारिज, जैसे कुछ चुनिन्दा सेवाओं को ही RTPS के दायरे में रखा गया |

जमीनी हकीकत :

पहले जहां आवेदन की रसीद पाना भी एक कठिन काम था, RTPS का आना एक बड़ी बात थी | हाथ में रसीद होना आगे जाने का रास्ता खोलता है और “सिंगल विंडो” काउंटर होने के कारण लोगों को अफसरों/कर्मचारियों के पीछे भागने से राहत मिली | इस पूरे प्रक्रिया का कम्प्यूटरीकृत होने से काम पहले की अपेक्ष सरल और तेजी से होने लगा | लाइसेंस, आवासीय और जाति प्रमाण पत्र निर्गत पाना पहले की अपेक्षा आसान हुआ और भ्रष्टाचार कम हुआ लेकिन अन्य सुविधाओं के बारे में वही नहीं कहा जा सकता | अगर जल्दी में कोई भी प्रमाण पत्र चाहिए तो पहले की तरह ही कर्मचारी को घूस देनी पड़ती है | अभी भी निश्चित समय में सेवा प्रदान नहीं की जाती और अगर घूस के बिना चक्कर लगाना पड़ता है | सामाजिक सुरक्षा पेंशन पाने की राह और भी कठिन है | बिचौलियों और पंचायत प्रतिनिधि को बिना घूस दिए काम नहीं होता | अपीलीय व्यवस्था काम नहीं कर रही और कर्मचारियों को दण्डित ना के बराबर किया जा रहा है |

कई राज्यों में RTPS की तरह का कानून बना है | इस दौरान भ्रष्टाचार ओर “गवर्नेंस” को लेकर देश में जन उभार हुआ | सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान (NCPRI) ने इसको लेकर कुछ कानून प्रस्तावित किये जिसमे शिकायत निवारण कानून प्रमुख था हालांकि पूरी कोशिशों के बावजूद यह कानून संसद में पारित नहीं हो पाया | 2015 में बिहार सरकार ने अग्रणी भूमिका निभाते हुए बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार कानून पारित किया | बिहार ऐसा कानून बनाने वाला पहला राज्य बना |

बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम, 2015

इस कानून के तहत व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष किसी सरकारी योजना, कार्यक्रम या सेवा के तहत फायेदा लेने के लिए अथवा फायेदा नहीं मिलने पर परिवाद दायर कर सकेंगे | शिकायत दायर करने के लिए सरकार “सूचना और सुकरण” केंद्र की स्थापना करेगी | लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी समय सीमा के अन्दर परिवाद दायर करने वाले को सुनवाई का अवसर देंगे और फिर उसपर निर्णय लेंगे | प्रत्येक लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी सप्ताह में कम से कम एक एक दिन परिवाद सुनने का दिन निश्चित करेगा | परिवादी अगर लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के निर्णय से असंतुष्ट होता है या उसकी शिकायत दूर नहीं होती तो वह अपील कर सकेगा | अपील के दो स्तर हैं | कानून में दंड का भी प्रावधान है जो ५०० रु से लेकर अधिकतम ५००० रु तक है |


जमीनी हकीकत :
सरकार ने इस कानून के तहत नियमावली घोषित कर दी है | अब देखना है कि इसका कार्यान्वयन किस प्रकार से होता है |

बिहार की शिकायत निवारण कानून की एक बड़ी कमजोरी है कि वह शिकायत को सेवा/कार्यक्रम/योजना के ही दायर में देखता है जबकि शिकायत का स्वरुप कहीं अधिक वृहद् हो सकता है जैसा कि झालो देवी, ग्राम आमगाछी, प्रखंड सिकटी, अररिया के मामले में हुआ | उनका पेंशन पारित है लेकिन बैंक अकाउंट गलत होने के कारण उन्हें पेंशन नहीं मिल पा रहा, उपर्युक्त दोनों कानून में इस शिकायत के लिए जगह नहीं है | कई बार एक शिकायत कई विभागों को एक साथ छूती है | ऐसे मामलों में लोगों के शिकायत का निपटारा कैसे होगा यह देखना पडेगा | अपील के लिए कोई स्वतंत्र प्राधिकार नहीं बनाया गया | दंड का जो प्रावधान है वह काफी कमजोर है | पंचायत/प्रखंड स्तर पर ही सुनवाई और निपटारा होने से लोगों को सुविधा होती | कानून बनाने की पूरी प्रक्रिया में सरकार ने कोई व्यापक चर्चा नहीं की जिसके कारण कई जन पक्षिय प्रावधान कानून में शामिल नहीं हो सके | पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों पर ठीक से अमल करने की हिम्मत अभी भी सरकार ने नहीं दिखाई है लेकिन एक कदम आगे बढ़ने का श्रेय इन दोनों कानून के लिए बिहार सरकार को देना पड़ेगा |

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