आधार की कॉर्पोरेट लूट!
कामायनी स्वामी
2010 में जन जागरण शक्ति संगठन ने पहली बार 1 मई मजदूर दिवस को मेले के रूप में मनाने का निश्चय लिया था. इस साल संगठन का छठा मजदूर दिवस समारोह था, पिछले छः सालों में बस 2013 को छोड़ कर हर साल एक घुमंतू मजदूर मेला संगठन की ओर से लगाया जाता रहा है. इस साल का मेला हर साल से कुछ फरक था. मेले से पहले प्रचार प्रसार के दौरान सब कुछ पर एक खौफ की चादर सी फ़ैली थी – बे-मौसम की आंधी और बरसात और फिर भूकंप के तेज़ झटके | पर फिर अचानक 30 अप्रैल को मौसम ने तसल्ली कर ली और छ: साल में यह पहली बार था कि 1 मई को आंधी तूफ़ान नहीं आया. साथी ब्रह्मानंद की प्रचार टीम को तो गाँव में साथी यह तक कह चुके थे कि वह पागल हो गए हैं “यहाँ जान की गारंटी नहीं और तुम मेला की बात करते हो.” मद्धम मद्धम मुस्काने वाले ब्रह्मानंद ने जवाब दिया “एक बात की गारंटी है – मेला तक एक भी मजदूर को मरने नहीं देंगे, मरना ही है तो मेला के दिन एक साथ मरेंगे” शायद ब्रह्मानंद की बात लोगों को पसंद आयी | हज़ारों की तादाद में मजदूर साथी आये और धैर्य से कार्यक्रम का हिस्सा बने रहे. इस बार एक संयम था साथियों में- जैसे वह सचमुच इस एक दिन अपने रोज़ मर्रा के संघर्षों को भूल कर मेले का आनंद लेना चाहते हों. “मेरी पेंशन नहीं बनी, हमें राशन नहीं मिलता, मेरा ज़मीन का कागज देखो …” इन सवालों और दबावों से दूर अररिया जिला के इस सबसे पिछडे इलाके के साथी और साथ ही संगठन के दूर सुदूर क्षेत्र से आये साथी जानने के लिए उत्सुक थे, सुनने के लिए तैयार. आज इसी रानीगंज प्रखंड की एक सुदूर पंचायत बिस्तोरिया के साथियों ने साथी शिवनारायण को फोन पर सूचित किया कि आधार कार्ड बनाने के लिए अवैध रूप से 30 रुपये प्रति व्यक्ति की वसूली की जा रही है. इस अवैध वसूली का सिलसिला हमारे अररिया जिला में बेशर्मी से चल रहा है. प्रशासनिक पहल के बाद एक दबाव बना, 6 प्राथमिकी (FIR) दर्ज हुई, हर प्राथमिकी (FIR) में हमारे साथियों की सक्रिय भूमिका रही पर आज बिस्टोरिया के उदहारण से स्पष्ट है की यह सिलसिला जारी है. निलेकानी साहब के एक स्वप्न के हत्ते चढ़े हम सब. आधार (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) की website पर साफ़ लिखा है कि लाभुकों को आधार के लिए कोइ पैसा नहीं देना है | वेबसाइट के अनुसार ” आधार नामांकन निशुल्क है।” पर बिहार का मिजाज़ ही शायद अलग है, यहाँ तो राजधानी तक में पैसा लिया जा रहा है फिर सुदूर सीमांचल का जिला अररिया का हाल क्या बयान करें हम. आधार की वेबसाइट के अनुसार बिहार में 2.5 करोड़ लोगों का आधार कार्ड बनाया जा चुका है, यानि कम से कम 95 करोड़ रुपये की अवैध वसूली हमारे बिहार में की जा चुकी है. यह सारा पैसा कहाँ जा रहा है? कुछ बेरोजगार नौजवानों के हाथ में जो यह आधार सेंटर चला रहे हैं? (इस मकड़ जाल को समझने के लिए देखें बॉक्स में दी कहानी). आप सोच रहे हैं मैं यह व्यथा यहाँ क्यूं रख रही हूँ ? यू. आई. डी. प्राधिकार के सामने रखूँ तो शायद कुछ बात बने. तो मुझे आपको यह बताने में अपार हर्ष महसूस हो रहा है कि मैंने यह खुशखबरी इस प्राधिकरण को ७ अप्रैल 2015 को दी पर कार्यवाही तो दूर आज तक मेरी शिकायत का एक “acknowledgement” तक नहीं मिला! आज शिवनारायण की पहल पर प्रखंड विकास पदाधिकारी, रानीगंज, द्वारा छापेमारी कर अवैध वसूली कर रहे व्यक्ति को हिरासत में लिया गया और उसका सारा सामान भी ज़ब्त कर लिया गया. हमें समझ नहीं आ रहा कि बस बिहार इतना गया गुजरा है जिसके चलते तथाकथित कार्पोरेट इमानदारी यहाँ आ कर कमज़ोर पड जाती है और पूरे देश की १०० करोड़ से अधिक जनसंख्या का आधार कार्ड निशुल्क बन रहा है और बनेगा? खैर यह तो स्पष्ट है कि अगर अररिया की जन संख्या के 30 लाख लोगों ने औसत 30 रूपए दिए तो इस घोटाले में हमारे जिले का योगदान 9 करोड़ रुपये होगा. अब आप पर है कि आप बताएं 900,00,000 संख्या के आगे आधार घोटाले में कितने शून्य लगेंगे …. उन सभी साथियों को सलाम जिन्होंने अपनी सुरक्षा की फिक्र ना कर आधार घोटाले को रोकने के लिए प्राथमिकी दर्ज कीं, अवैध कम्पयूटर ज़ब्त कराये और दबाव एवं लालच के सामने अपने बयान पर बने रहे | जिंदाबाद!
यू. आई. डी की कारपोरेट लूट का विकेन्द्रित माडल:यू. आई. डी प्राधिकार ने टेंडर निकाला . दिल्ली और गुरगांव की कंपनियों ने यह टेंडर लिया. फिर इन कंपनियों ने “मानव संसाधन” के नाम पर किसी एक कंपनी को हर छोटे बड़े जिले और टाउन में रखा. इस कंपनी ने पढ़े लिखे बेरोजगारों के साथ कॉन्ट्रैक्ट बनाया “आप आधार बनाएं, हम आपको मशीन और उसकी देख रेख की व्यवस्था देंगे, बाकी सारा खर्च आपको स्वयं वहन करना है और आधार कार्ड निशुल्क बनाना है”. सो अब इन समाजसेवी युवाओं से उम्मीद थी कि वह अपने घर से बिजली, जनरेटर, डीज़ल की व्यवस्था कर अपनी मुफ्त मेहनत लगा लोगों का आधार कार्ड बनायेंगे और इसके बदले में दिल्ली और गुडगाँव की कम्पनियां जिन्होंने टेंडर भरे थे यू. आई. डी प्राधिकार से ‘पेमेंट’ शुद्ध मुनाफे के रूप में पाएंगी और इस का कुछ हिस्सा “मानव संसाधन” जुगाड़ने वाली कम्पनी से बाँट लेंगी.“मानव संसाधन” कम्पनी कुछ कम नहीं वह ‘मुनाफे में घाटो क्यूं’ सहें? सो इन कंपनियों ने इन पढ़े लिखे बेरोजगारों से ही मशीनें खरिदवायीं और फिर कान में फुस फुसाया “लूट की छूट है, जिस से जैसा ले सकते हो वसूल कर लो!” नतीजा अकेले अररिया का इस विकेन्द्रित लूट में योगदान होगा नौ करोड़ रुपये! आपके जिला या टाउन ने कितना योगदान दिया या अनुमानित योगदान देगा, इस का जवाब sms करें 9771950248 पर. |
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